Monday, 25 February 2013

Nutan Chitrakatha-352-Mamaji Aur Pagdi Ki Karamaat


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नूतन चित्रकथा-352-मामाजी और पगड़ी की करामात
 मामा जी,नाना जी,काका जी और चाचा चौधरी ये सब एक ही नाव पर सवार चरित्र है। सब की कहानियां एक जैसी,सभी अति बुद्धिमान,और सभी के साथ किसी न किसी रूप में एक बहुत ताकतवर साथी का होना,सभी कुछ एक जैसा। और मैंने जब कॉमिक्स पढनी शुरू की थी तब चाचा चौधरी को छोड़ कर कोई कॉमिक्स पढने को नहीं मिली थी इसलिए चाचा चौधरी ही पढ़ा गया,और चाचा चौधारी की कॉमिक्स ने हमारा बहुत मनोरंजन किया। पर जब कॉमिक्स मिलनी कम हो गयी तब जा कर मैंने नाना जी, काका जी और मामा जी को भी पढ़ा। चित्रों को छोड़ दूँ तो कई मायनो में ये सब चाचा चौधरी से बेहतर थे,कहानियां आप गुदगुदाने में सझम है। आज इसी कड़ी में मै मामा जी की एक कॉमिक्स अपलोड कर रहा हूँ। उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी।
 आज मै आप सब से "दिखावा" के बारे बात करूँगा। जब भी ये शब्द मेरे सामने आता है तब मुझे अपने HDFC Life में काम करने वाले दिन याद आते है और आता है संजय श्रीवास्तव की कही गयी वो बात कि " काम करो या न करो पर काम करने का दिखावा तो करो।" ये बात उस समय तो मुझे ज्यादा समझ में नहीं आई थी पर आज मुझे पता चलता है की ये थी बहुत ही गहरी बात। हम सभी इसी तरह से अपनी जिन्दगी में कही न कही दिखावा तो करते ही है, कभी अपने फैयदे के लिए तो कभी दुसरे को दुःख न देने के लिए,और कभी कभी तो अपने अहम् को ऊँचा करने के लिए भी हम दिखावा करते है।
दिखावा तो सभी करते है किसी न किसी स्तर पर,और व्यक्तिगत रूप से मै इसे बहुत बुरा भी नहीं मानता। पर इसकी भी अपनी सीमा होनी चाहिए,आप जी खोल कर दिखावा कर सकते है,पर उसमे शालीनता होनी चाहिए,अब आप कहेंगे की जब दिखावा ही है तो उसमे शालीनता कैसे हो सकती है, नहीं ऐसा नहीं है शालीनता के साथ किया गया दिखावा ही समाज का निर्माण करता है। समाज आखिर दिखावा ही है और क्या  है ? हम कैसे भी क्यों न हों हमें सामाजिक होने का दिखावा करना ही पड़ता है, आप के घर खाने को हो न हो पर घर पर मौत होने पर आत्मा की शुधि के नाम पर लोगो को खिलाने का दिखावा करना पड़ना है, इस दिखावे ने हमारा कितना नुकशान किया है और कितना कर रहा है उसके बारे में अगर आप थोडा शोचेंगे तो पाएंगे की हम सब जो कुछ भी करते है वो एक दिखावा ही तो होता है। पर अगर कोई दिखवा किसी को कष्ट न पहुचे तो ठीक है पर अगर आप का दिखवा किसी को नुकशान पहुचाने लगे तो फिर वो दिखावा आप के मानसिक दिवालियापन की निशानी होता है।
अभी मैंने जिस स्कूल में पढ़ना शुरु किया है वहां पर मुझे ऐसा ही दिखावा देखने को मिला जिसने मुझे बहुत कष्ट पहुचाया, स्कूल में बच्चो के वार्षिक इम्तहान चल रहे थे,जैसा की अक्सर होता है की बच्चे कुछ न कुछ अपने हाथो या फिर पेपर पर कुछ न कुछ लिख लेते है जिसे वो उसे इम्तहान में इस्तेमाल कर सके,मै इस बात को पूरी तरह से गलत मानता हूँ और हम अध्यापक का यही काम होता है की हम उन्हें ये सब करने से रोके।ऐसी की एक घटना में हमारी स्कूल की एक अध्यापिका की क्लास में भी ऐसा ही हुवा, उस दिन हमारे स्कूल के संस्थापक भी आये थे बस उनको दखाने के लिए मै बहुत इमानदारी से अपना काम करती हूँ उनने उन बच्चो को उनके सामने पकड़ लिया और उसके बात जो दिखावे का नाटक हुवा उसका क्या कहना, उन बच्चो को एग्जामिनेशन हाल से हटाया गया फिर उनके अभिवावकों से शिकायत की गयी,और इस पुरे दिखावे में उन बच्चो का पूरा 45 मिनट बर्बाद किया। सवाल ये उठता है की क्या ये दिखवा जरुरी था? मुझे नहीं लगता, ऐसा नहीं है की मै ये मानता हूँ की बच्चे सही पर सही तो वो टीचर और वो संस्थापक जी भी नहीं थे। जो टीचर अपनी क्लास कण्ट्रोल नहीं कर सकता,उसे हर दुसरे बात के लिए संस्थापक की जरुरत पड़े वो क्या पढाता होगा? उन्हें दिखावे के बजाये खुद ही उन बच्चो को देखना चाहिए था और उन्हें रोकना चाहिए था न की उन बच्चो का समय बर्बाद करना चाहिए था। मेरे हिसाब से ये होना चाहिए था- टीचर को शिकायत नहीं करनी चाहिए थी उन बच्चो को क्लास में खड़ा करके डाटने के बाद उनको शाफ करने को कहना चाहिए था और फिर उनको क्लास में काम करने देना चाहिए था। और अगर टीचर ने शिकायत कर दी थी तो संस्थापक जी को बच्चो को एग्जाम के बाद बुला का वो सब करना चाहिए था इससे बच्चो का 45 मिनट बच जाता और उनके मन की भी हो जाती। पर हाय रे दिखावा !!
कभी अपने को सबसे बड़ा दिखाने का दिखावा ,तो कभी किसी को नीचा दिखने के लिए दिखावा,
 पर मुझे लगता है जिनमे काबिलियत नहीं होती है वो ही अपने को सबसे बड़ा दिखाने का दिखावा करते है और जो काबिल होते है उन्हें दिखावे की जरुरत ही नहीं पड़ती। इसलिए दिखावा तो करना ही नहीं चाहीये पर अगर करना ही पड़े तो फिर ऐसा दिखावा करना चाहिए जिससे चाहे अपने को नुकशान हो जाये किसी और को तकलीफ नहीं पहुचनी चाहिए।
आज फिर ज्यादा लिख गया, कोई नहीं होता है। आप सब इस बेहतर कॉमिक्स का आनद लें जल्द ही दुबारा मिलते है .............

Tuesday, 19 February 2013

Pawan Comics-Super Power Vikrant Aur Kaalyantra Ka Pujari


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पवन कॉमिक्स - सुपर पॉवर विक्रांत और कालयंत्र का पुजारी
 जैसा की मै पहले ही बता चुका हूँ की "पवन कॉमिक्स" में "चट्टान सिंह" और "सुर्यपुत्र" के बाद ये ही एक चरित्र था जिसके पास ढेर सारी आलौकिक शक्तियां थी। कहानी के लिहाज़ से ये कॉमिक्स मुझे बहुत अच्छी लगी थी,और इनको पढने में मुझे बहुत मज़ा आता था। पर तब किराये पर कॉमिक्स पढने का चलन था और कॉमिक्स खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे। पर जब कॉमिक्स का समय ख़राब आया तब तक मै नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव में पूरी तरह से खो चूका था और उनकी कॉमिक्स बहुत बेहतर कहानियों और चित्रों के साथ आती थी,और मुझे बहुत दिनों तक इन कॉमिक्स के बंद हो जाने का पता ही नहीं चला।
 अगर नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स आ रही है तो मेरे लिए सब कॉमिक्स आ रही थी,पर जब राज कॉमिक्स ने भी कॉमिक्स कम छापनी शुरु की तब पढने के लिए कॉमिक्स कम पड़ने लगी,तब जा कर मुझे लगा की उन कॉमिक्स को पढ़ा जाये जो की मुझे अच्छी लगती थी। उनमे से "भूतनाथ'' (नूतन कॉमिक्स) और "सुर्यपुत्र"(पवन कॉमिक्स), और "सुपर पॉवर विक्रांत"(पवन कॉमिक्स). पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी,जल्दी से ये कॉमिक्स मिल नहीं रही थी और कुछ लोग पहले से इस बारे में सजग हो चुके थे और वो दुकानदारों को ज्यदा पैसा दे रहे थे और तब तक मै उन्ही पुराने ढर्रे पर जी रहा था की प्रिंट रेट से आधे ही पैसे दूंगा,इससे ये कॉमिक्स मुझे नहीं मिली। और जब मैंने पैसे देने शुरु किया तब तक जैसे सब ख़तम हो चुका था, "मनोज कॉमिक्स" तो एक बार मिल भी जाती थी पर पवन, नूतन, नीलम के दर्शन दुर्लभ हो चुके थे। फिर मै इन्टरनेट की दुनियां में आया तो पाया की कॉमिक्स को स्कैन और अपलोड करके हमेशा के लिए बचाया जा सकता है,उसके बाद से आज तक इसी प्रयास में लगा हूँ। जब मैंने स्कैन करना शुरु किया था तब से मेरी हार्दिक इच्छा थी की "सुर्यपुत्र" और "सुपर पॉवर विक्रांत" किसी तरह से अपलोड हो जाएँ। पर मेरे पास इन दोनों की एक भी कॉमिक्स नहीं थी और मुझे लगता भी नहीं था की कभी होंगी। पर कहते है न की
 "जहाँ चाह, वहाँ राह" पहले तो प्रदीप शेरावत जी ने सुर्यपुत्र की पहली कॉमिक्स जो मुझे भेजी वो थी
 "मौत की पुतली" और सिर्फ इस कॉमिक्स के लिए मैंने पूरा पाकेट अपने ऑफिस में खोल दिया था बिना इस बात की परवाह किये की लोग क्या सोचेंगे। फिर तो कॉमिक्स एक-एक करके मिलने लगी और सुर्यपुत्र लगभग पूरी हो रही थी दो कॉमिक्स को छोड़ कर एक "सुर्यपुत्र" और दूसरी "सुर्यपुत्र और बौना राक्षस" . फिर मुझे देवेन्द्र भाई के यहाँ जाने का मौका मिला और उनके यहाँ से मुझे "सुर्यपुत्र" मिल गयी और बहुत से
"सुपर पॉवर विक्रांत" की कॉमिक्स,पर इस सिरीज़ में भी एक परेशानी थी की इसकी दूसरी कॉमिक्स "कालयंत्र का पुजारी" नहीं मिल रही थी और अधूरी कहानी पोस्ट करने का मेरा मन नहीं हो रहा था। पर आखिरकार "प्रदीप जी" की मदद से ये कॉमिक्स मुझे मिल गयी है जिसे आज मै अपलोड कर रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ की इस सिरीज़ की सारी कॉमिक्स अपलोड करने में मै सफल हो पाउँगा।
आप ने ,उम्मीद है की "सुपर पॉवर विक्रांत" का भरपूर आनंद लिया होगा और थोड़े बेचैन होंगे उस कहानी का अंत जानने के लिए,तो देर किस बात की है डाउनलोड कीजिये।
 आप सब इस बेहतरीन कॉमिक्स का आनंद लें दुबारा जल्दी ही मिलते है।

Friday, 15 February 2013

DC-405-Motu Chhotu aur Khazane ki Loot


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डायमंड कॉमिक्स - मोटू छोटू और खजाने की लूट
 मेरे चाहने वालों को मुझ से इस बात की हमेशा शिकायत रहती है की मै डायमंड कॉमिक्स स्कैन नहीं करता। और सही भी यही है, इसका कारण जो मुझे समझ में आता है वो ये है की मुझे डायमंड कॉमिक्स कभी भी पसंद नहीं आई,और जो चीज़ पसंद न हो उसको खरीदना और फिर उसे स्कैन करना मुझे दुनियां का सबसे मुश्किल काम लगता है। डायमंड कॉमिक्स में मैंने सुरु में चाचा चौधरी खूब पढ़ा पर जब उन्होंने कॉमिक्स की कहानियों को बार बार छापना सुरु किया तो मैंने उसे भी बंद कर दिया। फौलादी सिंह, राजन इकबाल,लम्बू मोटू पढ़ा तो पर न उनकी कहानियां मुझे भाई और न ही उनके चित्र। इसलिए न ही डायमंड का संग्रह करने की कोशिश की और न ही कभी इच्छा हवी पर फिर भी डायमंड की कई कॉमिक्स मेरे पास होंगी। इसलिए मैंने वो कॉमिक्स अपलोड करने की सोची है जो की डायमंड की हो,और ये उसी कड़ी में अपलोड कर रहा हूँ।
आज कल मै जिस तरह से व्यस्त हूँ उसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था थकान तो बहुत हो रही है परन्तु फिर भी इसका अपना एक अलग मज़ा है।
 मैं ऐसे चरित्रों की कॉमिक्स नहीं पढना चाहता जो की अच्छा करने जाएँ और उनके साथ बुरा हो जाये,और ऐसी बाते मुझे तकलीफ पहुचती है,इसी कारण मैंने इस कॉमिक्स को भी नहीं पढ़ा है मै ये नहीं कह सकता की ये कॉमिक्स कैसी होगी वैसे उम्मीद है की कॉमिक्स की कहानी अच्छी ही होंगी। आप इस कॉमिक्स का आनंद ले मैं जल्दी ही आप से फिर मिलता हूँ ....................

DC-264-Motu Patlu Aur Anguthi Ka Hangama

Wednesday, 6 February 2013

Pawan Comics-Super Power Vikrant


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पवन कॉमिक्स-सुपर पॉवर विक्रांत
 पवन कॉमिक्स में सुपर हीरो वाली छाप वाले चरित्र बहुत ही कम छपे थे। मुझे जितना याद पड़ता है,ढेर सारी सुपर पवार वाले चरित्र, जो की पवन कॉमिक्स में छपे थे उनमे "चट्टान सिंह", "सुर्यपुत्र" और "सुपर पवार विक्रांत" ही थे। "चट्टान सिंह" की कॉमिक्स तो मुझे उस समय पढने को नहीं मिली थी पर "सुर्यपुत्र" और "सुपर पवार विक्रांत" की कॉमिक्स मैंने पढ़ी भी थी और पसंद भी बहुत आई थी। पर समय की आंधी में सब कुछ जैसे बह सा गया था,मुझे कभी भी नहीं लगा था की ये कॉमिक्स दुबारा पढने को मिलेंगी। "सुर्यपुत्र" और 'सुपर पवार विक्रांत' की एक भी कॉमिक्स नहीं थी, फिर मुझे सुर्यपुत्र की एक कॉमिक्स "प्रदीप शेरावत" जी ने भेजी और उसके बाद तो एक के बाद एक कॉमिक्स मुझे मिलने लगी और आज "सुर्यपुत्र" की सारी प्रकाशित कॉमिक्स मेरे पास है,जिसमे "सुर्यपुत्र" कॉमिक्स देवेन्द्र भाई की दी हुई है, ये कॉमिक्स भी उन्ही की है। सुपर पवार विक्रांत की एक दो कॉमिक्स को छोड़ का सही मै आज की तारीख में अपलोड करने की स्तिथि में हूँ और जल्दी ही मै ये कर भी दूंगा।
 आज कल मेरी जिन्दगी में बहुत कुछ बहुत जल्दी-जल्दी घट रहा है जो की मेरी जिन्दगी और सोच दोनों को ही प्रभावित कर रहा है। आज उन घटनाओं से प्रभावित हो कर मै फिर एक बहुत्र ही विशेष शब्द "प्रतिस्पर्धा" पर अपने विचार लिख रहा हूँ,कोई जरुरी नहीं की आप मेरे विचार से सहमत हों, बस आप इसे मेरी सोच समझ कर उससे सहमत या असहमत हो सकते है।
 Darwinian 'survival-of-the-fittest'
 "सर डार्विन" के अनुसार जो बेहतर होता है वही जिन्दा रहता है,यही जंगल का कानून भी है जो शेर से कम तेज़ दौड़ता वो मारा जाता है। परन्तु जब मनुष्य ने समाज का निर्माण किया तो सभी को बराबर का अधिकार मिल गया,और कमजोरों के लिए जीने का एक बेहतरीन मौका। था तो ये प्रकृति के विरुद्ध ही पर मनुष्य जाती के उत्थान के लिए बहुत ही जरुरी। पर जो हमारे अन्दर का जानवर है उसने इस प्रतिस्पर्धा को एक नया रूप दे दिया,पढाई में अच्छे नंबर लाने की प्रतिस्पर्धा,नौकरी में अपनी नौकरी बचाने और औरों से बेहतर करने की प्रतिस्पर्धा,अपने आप को दूसरों से बेहतर साबित करने की प्रतिस्पर्धा।
कहने का अर्थ ये है प्रतिस्पर्धा भले ही जान पर न बनती है पर जीना जरूर हराम कर देती है। पर प्रतिस्पर्धा है तो प्रतियोगी तो आप को बनना ही पड़ता है,चाहे आप चाहे, चाहे न चाहे। प्रतिस्पर्धा हमेशा बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है अगर आप उसे सही तरीके और नियमो के साथ करते है, उससे भी ज्यदा जरुरी सही सोच के साथ करते है। अब प्रतिस्पर्धा में सही सोच का क्या मतलब है, तो मै आप को समझता हूँ, अगर मेरी किसी के साथ प्रतिस्पर्धा है तो मै इश्वर से प्रार्थना करूँ की सामने वाला बीमार हो जाये और मै जीत जाऊं,या कुछ ऐसा कर दूँ की तो ये प्रतियोगिता छोड़ दे.पर मज़ा तो तब है जब सामने वाला पूरी तैयारी के साथ लड़े तो उसमे तो हारने में भी मज़ा है।
 पर सच कहूँ जब कोई मुझ से कहता है की मैं तुमसे बेहतर करके दिखा दूंगा तब मै समझ जाता हूँ कि इसके बस का कुछ भी नहीं है,जिसने पहले से ही मुझे बेहतर मान लिया हो वो मुझ से क्या जीत पायेगा,और अगर कही गलती से जीत भी गया तब भी कभी तरक्की नहीं कर पायेगा। अब ऐसे में तो आप किसी से प्रतिस्पर्धा कर ही नहीं पाएंगे तो फिर ऐसा क्या करें की हम किसी से प्रतिस्पर्धा करें भी नहीं, और हम तरक्की भी करते जाये।जहाँ तक मेरा विचार है की तरक्की के लिए प्रतिस्पर्धा जरुरी है,पर अगर हम किसी को अपना प्रतियोगी मान लेते है तो फिर जाने-अनजाने हमारे मन में उसके प्रति दुर्भावना घर कर जाती है जिससे हमारा मानसिक और नैतिक स्तर गिर जाता है,उसके बाद जीतने/तरक्की तो भूल जाईये अपना साधारण स्तर भी कायम नहीं रह पाता है।
ऐसे में हमें करना क्या चाहिए और किसे अपना प्रतियोगी बनाया जाए?
जहाँ तक मैंने समझा है की अगर आप को तरक्की करना है और हमेशा करते रहना है तो आप को किसी से भी प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए बल्कि प्रतिस्पर्धा अपने आप से ही करनी चाहिए। जैसा की मै आज तक करता आया हूँ,मैंने कभी भी ये नहीं सोचा की मुझ से बेहतर कौन है और मुझ से कम बेहतर कौन है,मैंने बस सिर्फ एक बात सोची है की मैंने कल जो किया था आज उससे बेहतर हो पा रहा है की नहीं और आज जो कर रहा हूँ, कल उससे बेहतर करने की पूरी कोशिश करूँगा। चाहे वो स्कूल में पढ़ाना हो या फिर कॉमिक्स स्कैन और अपलोड करने से साथ उस बारे में कुछ लिखना हो, बस वो पहले से बेहतर होना चाहिए और अगर नहीं हो पा रहा है तो कम से कम पहले जितना तो जरुर हो। अगर आप उन बच्चो से बात करेंगे या आप मेरे पुराने कॉमिक्स अपलोड करके पढेंगे तो आप पाएंगे की वो पहले से बेहतर होते चले गए है और आगे भी ऐसा ही होना चाहिए। इससे मुझे सबसे बड़ा फ़ायदा ये है  कि मै हमेशा तरक्की करता रहता हूँ और किसी को लेकर मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं आती और न ही किसी के अच्छे और ख़राब काम को देख कर कोई जलन या कोई चिड भी नहीं होती। मैंने आज तक ऐसा ही किया है और आगे भी ऐसा ही करता रहूँगा।
आज फिर काफी बात हो गयी है, उम्मीद है आप सब को मेरी बाते अनुचित नहीं लगी होंगी।
 आप सब इस बेहतर कॉमिक्स का आनंद ले फिर जल्दी की एक नयी कॉमिक्स के साथ दुबारा मिलते है .....

MC-1112-Ma Ka Karz

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