Thursday 12 February 2015

Indrajaal Comics-Vol-26-No.-35-Khunkhaar Giroh


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इंद्रजाल कॉमिक्स-२६-३५-खूंखार गिरोह
 इंद्रजाल कॉमिक्स में "बहादुर" ही पहला भारतीय सुपर हीरो है। इसकी कहानी बहुत ही सीधी और साधारण सी है पर दिमाग को बहुत सुकून देती है। आज तो ऐसी कहानी के लिए दिल तरस जाता है। इस कहानी में एक खतरनाक गिरोह बड़े शानदार तरीके से डाके डालते है और उन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी बहादुर के कन्धों पर आ जाती है।अब बहादुर इस गिरोह को कैसे पकड़ता है यही कहानी का मुख्य आकर्षण है। पढ़कर जरूर देखे।                                                                                    नैतिकता
 आज बात नैतिकता की करने की हो रही है। वैसे तो नैतिकता की बात तो सभी करते है पर नैतिकता दिखती किसी में भी नहीं है। (मुझ में भी नहीं) पर मुझे लगता है कुछ जगह नैतिकता ऑक्सीजन से भी ज्यादा जरुरी है। (वैसे तो नैतिकता सभी जगह जरुरी है ) वो जगह है स्कूल, और मै स्कूल में ही काम करता हूँ।
अभी कुछ दिन दिन पहले लखनऊ के एक स्कूल में एक अध्यापक पर अपनी ही छात्रा के साथ कुकर्म करने का आरोप लगा। (मै इस बात में नहीं पड़ना चाहता की क्या सही है क्या गलत) पर इस घटना में मुझे अन्दर तक हिला कर रख दिया, कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है, और यहाँ ये सब हो भी जाता है। नैतिकता का ऐसा पतन समझ से परे है।
अब तो मुझे लगने लगा है हर जगह ऐसे जानवर मौजूद है बस हमें उसे पहचाने की जरुरत है। पर उन्हें पहचाना बहुत कठिन है। कोई भी वो जानवर हो सकता है। इसमें सबसे बड़ी परेशानी ये है की इनके शिकार होने वाले मासूम और न समझ है और वो जिस उम्र के पड़ाव में होते है उन्हें बहलाना सबसे ज्यादा सरल होता है। ऐसे में एक अध्यापक के नाते मै सिर्फ अपने नैतिक होने जिम्मेदारी ले सकता हूँ और किसी की नहीं। पर ऐसे में किया क्या जाये। सच पूछो तो कुछ भी कर पाना बहुत मुश्किल है।
 पर अगर कुछ सावधानी रखी जाए तो इससे कुछ बचा जा सकता है। मुझे लगता है की इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी बच्चियों की माँ पर होती है उन्हें अपने बच्चियों के साथ माँ की तरह नहीं सहेलियों की तरह होना चाहिए जिससे वो उन्हें अपनी छोटी से छोटी बात बताएं। और जिसे भी घर पढ़ाने घर बुलाएँ या जिनके घर भेजें उन पर विश्वास तो करें पर सतर्क हमेशा रहे। और अपने बच्चों से उनके बारे में बात करते रहे। स्कूल में भी कुछ सावधानी रखी जा सकती है। स्कूल प्रबंधन को चाहिए की कम से कम एक लड़कियों के मामले के महिला विशेषज्ञ को रखना चाहिए और उनसे अपने स्कूल ८ वीं से लेकर १२ वीं तक की लड़कियों से लगातार बात करने देना चाहिए जिससे इस तरह की कोई बात होने से पहले उसके पता चलने की सम्भावना बढ़ जाएगी। अगर हम इन छोटी बातों का ध्यान दें तो फिर नैतिकता के हनन को कुछ हद तक रोका जा सकता है।
 वैसे भी मैंने अपने इस जीवन में एक ही बात सीखी है कि
" इंसान तब तक ही ईमानदार रहता है जब तक उसे बेईमानी का मौका नहीं मिलता"।

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