Friday, 9 October 2015

Parampara Comics-132-Gorilla



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परम्परा कॉमिक्स -१३२-गोर्रिला
 परम्परा कॉमिक्स उन कॉमिक्स प्रकाशन में से था जिन्होंने कॉमिक्स प्रकाशन का कार्य तब शुरु किया था जब कम्प्यूटर युग का आवागमन हो चूका था और कॉमिक्स युग अपने चरम पर था। पर इस प्रकाशन ये कॉमिक्स छापने का कार्य पुरे लगन और ईमानदारी से किया था उस समय के बाकी प्रकाशकों की तरह इनका ध्यान सिर्फ कॉमिक्स छापने पर ही नहीं था बल्कि कॉमिक्स की गुडवत्ता पर पूरा ध्यान भी दिया था। इनकी कॉमिक्स की कहानियों और चित्रो में नयापन था। उस समय के कई अच्छे लेखकों जैसे हनीफ अज़हर जी ने इस प्रकाशन के साथ काम किया था। अगर कॉमिक्स युग इस प्रकासन के आने के कुछ समय बाद ही न खत्म हो गया होता तो हम आज मनोज कॉमिक्स की तरह इस प्रकाशन की कॉमिक्स भी ढूढ़ते।
 इस प्रकासन की कुल मिला कर १५ ० से २०० के बीच आई होंगी। इस प्रकाशन ने अपनी कॉमिक्स का नंबर १०१ से शुरु किया था इस लिहाज़ से ये कॉमिक्स १३२ वी न होकर ३२ है। गोर्रिला सीरिज की दो कॉमिक्स छोड़कर बाकी सारी कॉमिक्स मेरे पास है जिसे मै अपलोड कर दूंगा। बची दो कॉमिक्स मेरे और मित्र जरूर अपलोड कर देंगे। ये गोर्रिला सीरीज की ओरिजिन सीरीज है जिसमे १ - गोर्रिला , २-गैंस्टर की तलाश।,३- मौत का चक्रव्यूह है। ये सारी कॉमिक्स मेरे पास है जिन्हे मै जल्द ही आप सब के लिए अपलोड कर दूंगा।
 जिंदगी में कुछ सही-सही नहीं घट रहा है, समझ में नहीं आ रहा है की मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। सब कुछ समझ के परे नज़र आ रहा है। इतना असहाय मैंने अपने आप को बहुत कम ही पाया है। कोई इतना अनैतिक कैसे हो सकता है और फिर जिनको लोगो पर को लोगो नैतिक बनाने की जिम्मेदारी है वो इस आनैतिका को बढ़ावा दे रहे है और जो इस आनैतिका उजाकर करा था आज वो सबसे ज्यादा खतरे में नज़र आ रहा है।
 कई लोगो ने मुझ से कहा है की मुझे कहानी लिखनी चाहिए। ये काम मेरे बस के बाहर की है फिर भी आज मै ये कोशिश करूँगा शायद मेरे मन की बात इसी तरह से मेरे अंदर से बाहर आ जाये जो मै सीधा नहीं कह सकता।
 ये कहानी है दो चौकीदारों की एक रमेश दूसरा सुरेश। दोनों एक ही कम्पनी में काम करते है दोनों का काम बहुत ही जिम्मेदारी की है। कम्पनी के मालिक अपने आप बहुत ईमादार बताते है। उनके पास सूचना आती है की चौकीदार अपना काम ठीक से नहीं कर रहे है और वो उन मज़दूरों से मिल गए है जो चोरी छुपे सामान निकाल के ले जाते है। उसने फैसला किया की सभी चौकीदार अपनी जगह बदल लेंगे,पर रमेश और सुरेश ने अपनी जगह बदले बिना अपनी जगह पर काम कर रहे थे तभी रमेश जब वहां की तलाशी ले रहा था तो उसे मज़दूर का सामान दिखा जिसमे चोरी का सामान था। उसने उस बारे में मज़दूर से बात की जो की तुम्हारे बैग में सुरेश का बैग क्यों है और उसने उसकी सूचना अपने मालिक को दी। मालिक भी भगवान का बनाया हुवा अनोखा नमूना था उसके लिए सुरेश की खुली चोरी मायने नहीं रख रही थी उसके लिए ये बात ज्यादा मायने रख रही थी की तुमने अपनी जगह क्यों नहीं बदली। अगर तुमने अपनी जगह बदली होती तो तलाशी सुरेश लेता तो ये बात कभी सामने नहीं आती। उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं लग रहा है की रमेश ने चोरी को उजागर की वो तो बार- बार सिर्फ एक बात कह रहा है की आप ने अपनी जगह क्यों नहीं बदली। ऐसे मालिक के साथ रमेश का काम करना मुश्किल होता जा रहा था। बार -बार ये ख़बरें आती थी की उस गेट के लिए कोई नया चौकीदार ढूढ़ा जा रहा है। वो वेचारा तो ईमानदारी करके फंस गया था। उसने भी नयी जगह नौकरी तलाशना शुरू कर दिया। अब ये तो समय की गर्त में छुपा था की मालिक रमेश को पहले निकलता है या रमेश को दूसरी नौकरी पहले मिलती है या समय के गर्व में कुछ और ही छुपा है। आप सब भी इसके आगे की कहानी को पूरा करने की कोशिश कीजिये अपने तरीके से मै भी इसे पूरा करूँगा अपने समय पर (यानि अगले अपलोड पर ) आज वैसे भी ज्यादा हो गया है फिर जल्द ही मिलते है। . . ,

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MC-1112-Ma Ka Karz

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