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मनोज कॉमिक्स-६३२-मौत के आँसू
ये कॉमिक्स मेरे संग्रह में नहीं थी और कहीं भी अपलोड भी नहीं थी। मतलब इस कॉमिक्स का मिलना बहुत जरुरी था। कॉमिक्स तो मिली पर मनोज कॉमिक्स के लिए इस कॉमिक्स से ज्यादा कीमत मैंने नहीं चुकाई थी। पर जो भी हो कॉमिक्स मिल गयी मेरे लिए ये ही बहुत है। पर जिस तरह से आज कल कॉमिक्स के दाम मांगे जा रहे है मैंने तो लगभग कॉमिक्स लेना बंद कर दिया है।
कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे मेरे लिए कुछ बदला ही ना हो,आज से १० -१५ साल पहले भी मैं अपने जेबखर्च से एक साथ २० कॉमिक्स नहीं खरीद सकता था और आज भी अपने वेतन से एक साथ २० कॉमिक्स नहीं खरीद सकता। "हे ईश्वर," कुछ तो बदले, चाहे वेतन, चाहे कॉमिक्स के दाम।
आज मन बाग़ी हो रहा हैं। जो कुछ आज मैं लिखने जा रहा हूँ वो कईओं को नाराज़ कर सकती है पर अगर नहीं लिखा तो मैं अपने आप से नाराज हो सकता हूँ।
धर्म एक ऐसा विषय है इस पर आप कैसा भी लिख लो विवाद तो होना ही हैं। मै अपने सभी पाठकों से विनम्र निवेदन करता हूँ,कि जो कुछ भी यहाँ लिखा जाता है वो मेरी निज़ी राय है और आप की राय मेरी राय से सर्वथा भिन्न हो सकती है। मै हिन्दू धर्म को मानने वाला हूँ और मैं ये मानता हूँ कि इससे बेहतर धर्म नहीं सकता। हम किसी भी जाति या वर्ग के हों हमारे लिए कुछ भी अनिवार्य नहीं हैं। हम किसी की पूजा करें, ना करें, मन्दिर जाएँ ना जाएँ ,ब्रत रखें, ना रखे, किसी भी बात की अनिवार्यता नहीं हैं। हमारे धर्म में नास्तिक के लिए भी उतनी ही जगह हैं जितनी आस्तिक के लिए।
हमारे धर्मग्रन्थ भी इसी तरफ इशारा करतें हैं हिरण्यकश्यप को भगवान ने इसलिए नहीं मारा था की वो भगवान की पूजा नहीं करता था या वो अपनी पूजा करवाना चाहता था। बल्कि इसलिए मारा क्योंकि वो अपने निर्दोष पुत्र प्रलाद को बार-बार मारने का प्रयास कर रहा था। हमारे धर्म में विचारों की आज़ादी हैं। हमारे इतिहास में कही भी ये नहीं मिलता की अगर किसी ने धर्म की मान्यता से हट कर कुछ कहा हो तो उसे सजा दी गयी हो। जबकि बाकी धर्मो में ऐसे बहुत उदहारण मिलते हैं। (चाहे सुकरात का हाथ काटना,या जरा जरा बात में फतवा जारी करना ) हमारे पूरे सनातन धर्म के इतिहास में हमने किसी को भी सनातन धर्म अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया हैं। क्योंकि हम जानते है की हम श्रेष्ठ है। इसके विपरीत चाहे मुस्लिम इतिहास उठाएं और चाहे ईसाई , इन्होने अत्याचार कर- कर के लोगो को अपने धर्म में शामिल किया है। मुग़ल बादशाह औरंगजेब का दिन हिन्दुओं को मुसलमान बनाने से ही शुरू होता था। हमारे किसी भी हिन्दू राजा ने किसी भी धार्मिक स्थल को नुक्सान नहीं पहुँचाया है।
पर अगर हम बात पहले मुग़ल बादशाह बाबर की करें तो उसने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवायी और हम आज भी दूसरे धर्म का आदर करते हुए राम मंदिर बनने का इंतज़ार कर रहे है। सिर्फ इतना ही नहीं है अगर हम मस्जिद चले जाएँ तो हमसे कोई सवाल नहीं पूछेगा। गिरजाघर चलें जाएँ तो ये हमारे धर्म के लिए सामान्य बात होगी। हिन्दू धर्म तो इतना वयापक है की हम ईसा मसीहा,मोहमद साहब वा गौतम बुध को भी भगवान विष्णु का अवतार मानते है। हिन्दू धर्म में लोग अपने आप धर्म का आचरण करते है। कोई उन्हें बाध्य नहीं करता। बड़े मंगल पर इतने लोग सेवा में होते है की खाने वाले कम होते हैं खिलाने वाले ज्यादा। कोई बाध्यता नहीं होती है आप चाहे तो सेवा करें चाहे तो न करें। हिन्दू धर्म कर्म प्रधान है आप अपना कर्म करते रहे चाहे पूजा करें चाहे ना करें आप सबसे बड़े धार्मिक माने जायेंगे। मैं अपने आप को बहुत किस्मत वाला समझता हूँ की मैं हिन्दू हूँ। हम कट्टर नहीं हैं पर कमजोर भी नहीं है। हमारा दयालु स्वभाव कमजोरी की निशानी नहीं है। जो हमारे साथ रहते है वे सर्वथा सुरक्षित रहते है इसलिए उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वो हमें भी सुरक्षित रखें।
आज वैसे भी बहुत ज्यादा हो गया है फिर मिलते है ..........
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मनोज कॉमिक्स-६३२-मौत के आँसू
ये कॉमिक्स मेरे संग्रह में नहीं थी और कहीं भी अपलोड भी नहीं थी। मतलब इस कॉमिक्स का मिलना बहुत जरुरी था। कॉमिक्स तो मिली पर मनोज कॉमिक्स के लिए इस कॉमिक्स से ज्यादा कीमत मैंने नहीं चुकाई थी। पर जो भी हो कॉमिक्स मिल गयी मेरे लिए ये ही बहुत है। पर जिस तरह से आज कल कॉमिक्स के दाम मांगे जा रहे है मैंने तो लगभग कॉमिक्स लेना बंद कर दिया है।
कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे मेरे लिए कुछ बदला ही ना हो,आज से १० -१५ साल पहले भी मैं अपने जेबखर्च से एक साथ २० कॉमिक्स नहीं खरीद सकता था और आज भी अपने वेतन से एक साथ २० कॉमिक्स नहीं खरीद सकता। "हे ईश्वर," कुछ तो बदले, चाहे वेतन, चाहे कॉमिक्स के दाम।
आज मन बाग़ी हो रहा हैं। जो कुछ आज मैं लिखने जा रहा हूँ वो कईओं को नाराज़ कर सकती है पर अगर नहीं लिखा तो मैं अपने आप से नाराज हो सकता हूँ।
धर्म एक ऐसा विषय है इस पर आप कैसा भी लिख लो विवाद तो होना ही हैं। मै अपने सभी पाठकों से विनम्र निवेदन करता हूँ,कि जो कुछ भी यहाँ लिखा जाता है वो मेरी निज़ी राय है और आप की राय मेरी राय से सर्वथा भिन्न हो सकती है। मै हिन्दू धर्म को मानने वाला हूँ और मैं ये मानता हूँ कि इससे बेहतर धर्म नहीं सकता। हम किसी भी जाति या वर्ग के हों हमारे लिए कुछ भी अनिवार्य नहीं हैं। हम किसी की पूजा करें, ना करें, मन्दिर जाएँ ना जाएँ ,ब्रत रखें, ना रखे, किसी भी बात की अनिवार्यता नहीं हैं। हमारे धर्म में नास्तिक के लिए भी उतनी ही जगह हैं जितनी आस्तिक के लिए।
हमारे धर्मग्रन्थ भी इसी तरफ इशारा करतें हैं हिरण्यकश्यप को भगवान ने इसलिए नहीं मारा था की वो भगवान की पूजा नहीं करता था या वो अपनी पूजा करवाना चाहता था। बल्कि इसलिए मारा क्योंकि वो अपने निर्दोष पुत्र प्रलाद को बार-बार मारने का प्रयास कर रहा था। हमारे धर्म में विचारों की आज़ादी हैं। हमारे इतिहास में कही भी ये नहीं मिलता की अगर किसी ने धर्म की मान्यता से हट कर कुछ कहा हो तो उसे सजा दी गयी हो। जबकि बाकी धर्मो में ऐसे बहुत उदहारण मिलते हैं। (चाहे सुकरात का हाथ काटना,या जरा जरा बात में फतवा जारी करना ) हमारे पूरे सनातन धर्म के इतिहास में हमने किसी को भी सनातन धर्म अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया हैं। क्योंकि हम जानते है की हम श्रेष्ठ है। इसके विपरीत चाहे मुस्लिम इतिहास उठाएं और चाहे ईसाई , इन्होने अत्याचार कर- कर के लोगो को अपने धर्म में शामिल किया है। मुग़ल बादशाह औरंगजेब का दिन हिन्दुओं को मुसलमान बनाने से ही शुरू होता था। हमारे किसी भी हिन्दू राजा ने किसी भी धार्मिक स्थल को नुक्सान नहीं पहुँचाया है।
पर अगर हम बात पहले मुग़ल बादशाह बाबर की करें तो उसने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवायी और हम आज भी दूसरे धर्म का आदर करते हुए राम मंदिर बनने का इंतज़ार कर रहे है। सिर्फ इतना ही नहीं है अगर हम मस्जिद चले जाएँ तो हमसे कोई सवाल नहीं पूछेगा। गिरजाघर चलें जाएँ तो ये हमारे धर्म के लिए सामान्य बात होगी। हिन्दू धर्म तो इतना वयापक है की हम ईसा मसीहा,मोहमद साहब वा गौतम बुध को भी भगवान विष्णु का अवतार मानते है। हिन्दू धर्म में लोग अपने आप धर्म का आचरण करते है। कोई उन्हें बाध्य नहीं करता। बड़े मंगल पर इतने लोग सेवा में होते है की खाने वाले कम होते हैं खिलाने वाले ज्यादा। कोई बाध्यता नहीं होती है आप चाहे तो सेवा करें चाहे तो न करें। हिन्दू धर्म कर्म प्रधान है आप अपना कर्म करते रहे चाहे पूजा करें चाहे ना करें आप सबसे बड़े धार्मिक माने जायेंगे। मैं अपने आप को बहुत किस्मत वाला समझता हूँ की मैं हिन्दू हूँ। हम कट्टर नहीं हैं पर कमजोर भी नहीं है। हमारा दयालु स्वभाव कमजोरी की निशानी नहीं है। जो हमारे साथ रहते है वे सर्वथा सुरक्षित रहते है इसलिए उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वो हमें भी सुरक्षित रखें।
आज वैसे भी बहुत ज्यादा हो गया है फिर मिलते है ..........
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