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अक्ल बड़ी या भैंस
ये मुहावरा जब से होश संभाला है तब से सुन रहा हूँ. हम को बचपन से लेकर आज तक भैंस ही बड़ी दिखी है और मुझे तो वो ही बड़ी लगती है.
अक्ल दूध नहीं देती भैंस देती है इसलिए भैंस बड़ी
भैंस ५००० में बिकती है अक्ल को कोई नहीं पूछता,
भैंस वाले वाले आज उत्तर प्रदेश पर शासन कर रहे
और अक्ल वाले तो मख्खी मार रहे है इसलिए भैंस बड़ी.
ऐसे तो कई उदहारण है जो ये साबित करते है की भैंस अक्ल से बहुत बड़ी है. अब बात कुछ पवन कॉमिक्स के प्रसिद्ध चरित्र सुखीराम-दुखीराम की कर लेते है. अपने को ढेर सारी मुशीबत में डाल कर लोगो की मदद करते है और मिलता हमेशा इनको जूता- चप्पल ही है. इस तरह के किरदार मुझे कभी भी नहीं भाए, मोटू-पतलू, भी इसी तरह के किरदार है, लोगो ने इन्हें बहुत पसंद किया, पर मै इन्हें कभी भी पसंद नहीं कर पाया. मुझे हमेशा ये लगता है की यदि आप कोई अच्छा काम करो तो आप के साथ अच्छा ही हो, परन्तु इन पत्रों के साथ हमेशा उल्टा होता है जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है इसलिए ये न पढना ही मुझे ज्यदा सुबिधाजनक दिखाई देता है. लेकिन ये पात्र सच्चाई का वो पहलु दिखाते है जो हमको दुनिया देती है, सब अपने आगे किसी के बारे में नहीं सोचते है,इसलिए इस तरह के चरित्र असली समाज के दर्शन करवाते है. आप भी असली समाज के दर्शन सुखीराम-दुखीराम के साथ कीजिये, फिर मुलाकात होगी अगले पोस्ट में----
अक्ल बड़ी या भैंस
ये मुहावरा जब से होश संभाला है तब से सुन रहा हूँ. हम को बचपन से लेकर आज तक भैंस ही बड़ी दिखी है और मुझे तो वो ही बड़ी लगती है.
अक्ल दूध नहीं देती भैंस देती है इसलिए भैंस बड़ी
भैंस ५००० में बिकती है अक्ल को कोई नहीं पूछता,
भैंस वाले वाले आज उत्तर प्रदेश पर शासन कर रहे
और अक्ल वाले तो मख्खी मार रहे है इसलिए भैंस बड़ी.
ऐसे तो कई उदहारण है जो ये साबित करते है की भैंस अक्ल से बहुत बड़ी है. अब बात कुछ पवन कॉमिक्स के प्रसिद्ध चरित्र सुखीराम-दुखीराम की कर लेते है. अपने को ढेर सारी मुशीबत में डाल कर लोगो की मदद करते है और मिलता हमेशा इनको जूता- चप्पल ही है. इस तरह के किरदार मुझे कभी भी नहीं भाए, मोटू-पतलू, भी इसी तरह के किरदार है, लोगो ने इन्हें बहुत पसंद किया, पर मै इन्हें कभी भी पसंद नहीं कर पाया. मुझे हमेशा ये लगता है की यदि आप कोई अच्छा काम करो तो आप के साथ अच्छा ही हो, परन्तु इन पत्रों के साथ हमेशा उल्टा होता है जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है इसलिए ये न पढना ही मुझे ज्यदा सुबिधाजनक दिखाई देता है. लेकिन ये पात्र सच्चाई का वो पहलु दिखाते है जो हमको दुनिया देती है, सब अपने आगे किसी के बारे में नहीं सोचते है,इसलिए इस तरह के चरित्र असली समाज के दर्शन करवाते है. आप भी असली समाज के दर्शन सुखीराम-दुखीराम के साथ कीजिये, फिर मुलाकात होगी अगले पोस्ट में----